कबीर की याद दिला दी महाराज ..अभिभूत हूँ !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार
अपनी जय बोलने वालों की कमी नही है आदरणीय,बहुत ही उम्दा प्रस्तुती.
बहु खूब . सुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . बधाई .
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है कृपया पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति
कासी काबा कोसती, काया कोसों दूर । सुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर । क्या कहनेबहुत सुंदरअंतिम दोहा भी लाजववाब है
बढ़िया प्रस्तुति है काबा काशी ........शुक्रिया चर्चा मंच में बिठाने का .
अति सुंदर!
bahut khubsuurat rachna, aabhar
वाह गुरूजी वाह!!!!
जीवन दर्शन को उजागर करती सुंदर कुण्डलिया.......
अब यही चलन बनता जा रहा है
सुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं भ्रमर ५
कथनी और करनी में अंतर रखना इंसानी फ़ितरत हो गई है!
बैसाखी की लाख लाख वधाइयों के साथ -माता स्कन्द माता की जय जय कार !!मीत आप हैं डालते, कुण्डलिनियों में जान |कुण्डलिया छोटी मगर, है कविता की शान ||
क्या बात है, बहुत खूब."सुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर"बहुत सुन्दर प्रस्तुति, मेरा हमेशा मानना है आप दोहा के बहुत बड़े उस्ताद है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.सादर
कबीर की याद दिला दी महाराज ..
ReplyDeleteअभिभूत हूँ !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआभार
अपनी जय बोलने वालों की कमी नही है आदरणीय,बहुत ही उम्दा प्रस्तुती.
ReplyDeleteबहु खूब . सुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . बधाई .
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकासी काबा कोसती, काया कोसों दूर ।
ReplyDeleteसुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर ।
क्या कहने
बहुत सुंदर
अंतिम दोहा भी लाजववाब है
बढ़िया प्रस्तुति है काबा काशी ........शुक्रिया चर्चा मंच में बिठाने का .
ReplyDeleteअति सुंदर!
ReplyDeletebahut khubsuurat rachna, aabhar
ReplyDeleteवाह गुरूजी वाह!!!!
ReplyDeleteजीवन दर्शन को उजागर करती सुंदर कुण्डलिया.......
ReplyDeleteजीवन दर्शन को उजागर करती सुंदर कुण्डलिया.......
ReplyDeleteअब यही चलन बनता जा रहा है
ReplyDeleteसुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteभ्रमर ५
कथनी और करनी में अंतर रखना इंसानी फ़ितरत हो गई है!
ReplyDeleteबैसाखी की लाख लाख वधाइयों के साथ -माता स्कन्द माता की जय जय कार !!
ReplyDeleteमीत आप हैं डालते, कुण्डलिनियों में जान |
कुण्डलिया छोटी मगर, है कविता की शान ||
क्या बात है, बहुत खूब.
ReplyDelete"सुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर"
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, मेरा हमेशा मानना है आप दोहा के बहुत बड़े उस्ताद है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसादर