देखे हर सम्बन्ध से, श्रेष्ठ मित्रता प्यार ।
स्वार्थ सिद्ध सुख-योग की, करे प्यार मनुहार ।
करे प्यार मनुहार, स्वयं की ख़ुशी मूल है ।
जाता देना भूल, करे पर कुल क़ुबूल है ।
सदा प्यार से श्रेष्ठ, मित्रता मेरे लेखे ।
स्वार्थ सिद्ध सुख-योग की, करे प्यार मनुहार ।
करे प्यार मनुहार, स्वयं की ख़ुशी मूल है ।
जाता देना भूल, करे पर कुल क़ुबूल है ।
सदा प्यार से श्रेष्ठ, मित्रता मेरे लेखे ।
श्रेष्ठ मित्रता भाव, परस्पर सुख दुःख देखे ।
आपकी यह पोस्ट आज के (०८ जून, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - हबीब तनवीर साहब - श्रद्धा-सुमन पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteसदा प्यार से श्रेष्ठ, मित्रता मेरे लेखे ।
ReplyDeleteJay Ho ! Shubh Ho !
Pranam evam Abhar Adaraniy !
sahee kaha. sacchi mitrata pyar se shreshth hai.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना आभार
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पढिये और अपने विचारों से मुझे भी अवगत करार्इ्रये
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बहुत सुन्दर रचना...badhaai
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