निकली अक्कल दाढ़ अब, झारखंड दरबार |
कार चलाना छोड़ कर, चला रहे |सरकार
चला रहे सरकार, मरे ना कोई पिल्ला |
करे नक्सली वार, सके ना पब्लिक चिल्ला |
कर ले बन्दर-बाँट, कसर पूरी कर पिछली |
अंधे हाथ बटेर,, लाटरी रविकर निकली ||
कारें चलती रोड पर, कुत्ता गया दबाय ।
बस में बस अफ़सोस ही, क्या है अन्य उपाय ।
क्या है अन्य उपाय, पाय क्षतिपूर्ति बराबर ।
चालक आगे जाय,टाल कर वहीँ कुअवसर ।
जान बूझ कर आप, नहीं ना कुत्ता मारें ।
मिला यही अभिशाप, चलें यूँ ही सर-कारें ॥
खूब खरी-खरी !
ReplyDeleteसुन्दर और सटीक !!
ReplyDeleteबढ़िया कटाक्ष
ReplyDeleteचलें यूंही सर कारें । क्या खूब कस कर लगाया है, पर ये अंधे के साथ बहरे भी हैं ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया , एकदम खरी-खरी !
ReplyDeleteवाह भाई जी गजब कह दिया
ReplyDeleteउत्कृष्ट व्यंग्य
आपके अपने अंदाज में
बधाई
जान बूझ कर आप, नहीं ना कुत्ता मारें ।
ReplyDeleteमिला यही अभिशाप, चलें यूँ ही सर-कारें ॥
वाह क्या बात है जी