13 July, 2013

मिला यही अभिशाप, चलें यूँ ही सर-कारें -


निकली अक्कल दाढ़ अब, झारखंड दरबार |
कार चलाना छोड़ कर, चला रहे |सरकार 

चला रहे सरकार, मरे ना कोई पिल्ला |
करे नक्सली वार,  सके ना पब्लिक चिल्ला |

कर ले बन्दर-बाँट, कसर पूरी कर पिछली |
अंधे हाथ बटेर,, लाटरी रविकर निकली ||


कारें चलती रोड पर, कुत्ता गया दबाय । 
बस में बस अफ़सोस ही, क्या है अन्य उपाय । 

क्या है अन्य उपाय, पाय क्षतिपूर्ति बराबर । 
चालक आगे जाय,टाल कर वहीँ कुअवसर । 

जान बूझ कर आप, नहीं ना कुत्ता मारें । 
मिला  यही अभिशाप,  चलें यूँ ही सर-कारें ॥ 

   

7 comments:

  1. चलें यूंही सर कारें । क्या खूब कस कर लगाया है, पर ये अंधे के साथ बहरे भी हैं ।

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  2. बहुत बढ़िया , एकदम खरी-खरी !

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  3. वाह भाई जी गजब कह दिया
    उत्कृष्ट व्यंग्य
    आपके अपने अंदाज में
    बधाई

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  4. जान बूझ कर आप, नहीं ना कुत्ता मारें ।
    मिला यही अभिशाप, चलें यूँ ही सर-कारें ॥

    वाह क्या बात है जी

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