प्रस्तुति
नौबत-बाजे द्वार पर, किन्तु कँटीली बाड़ |
काट फिदायीन घुस रहे, बरबस मौका ताड़ | बरबस मौका ताड़, काट दे प्रहरी-सैनिक | तोड़े गोले दाग, सीजफायर वो दैनिक | केवल कड़े बयान, यहाँ बाकी नहिं कुब्बत | कल देते गर मार, आज नहिं होती *नौबत ||
*दुर्दशा
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मेरी-टिप्पणियां
मिट्टी माथेपर मल मलके माफ़ी मांग अरे मक्कारों |
भारत भू का यह चन्दन है, चूमो चाटो खुद को तारो | कई युद्ध हारे हो अबतक, आज आखिरी चोट सँभारो | धोखे से कुछ सैनिक मारे, नहीं बचोगे अब हत्यारों - |
खोले खाकी गेट सा, पाकी मन संकोच |
ढूँढ़ खूफिया रास्ते, घुसता निश्चर-पोच |
घुसता निश्चर-पोच, लोच भारत दिखलाता |
किन्तु पाक की सोच, नोच कर हरदम जाता |
पतली सी यह रेख, किन्तु वह नफरत घोले |
बचा आत्म-सम्मान, कहीं ना भारत खो ले |
ढूँढ़ खूफिया रास्ते, घुसता निश्चर-पोच |
घुसता निश्चर-पोच, लोच भारत दिखलाता |
किन्तु पाक की सोच, नोच कर हरदम जाता |
पतली सी यह रेख, किन्तु वह नफरत घोले |
बचा आत्म-सम्मान, कहीं ना भारत खो ले |
मनहरण बात की, पाक के खुराफात की
पगड़ी अभिजात की, रंग रंग भेद है |
तन मन पट काला, निकल गया है दीवाला
पड़ोसी ये बुरा पाला, गांधी को भी खेद है |
समझे हैं धूर्त चाल, पाकी अब देखभाल |
सामने है लाल लाल, देगा तन छेद है |
सिरीमान योगराज, कहते हैं पाक बाज
नहीं तो होवे अकाज , रहा जो कुरेद है || |
लेंगे जूतों से खबर, खबरदार रे पाक |
बूट लादते घूम अब, कटवा करके नाक |
कटवा करके नाक, सदा नफरत फैलाया |
कर कर के घुसपैठ, खून निर्दोष बहाया |
बड़ा बेहया धूर्त, नहीं हम माफ़ी देंगे |
गर फेंकेगा ईंट, मार हम पत्थर देंगें |
बूट लादते घूम अब, कटवा करके नाक |
कटवा करके नाक, सदा नफरत फैलाया |
कर कर के घुसपैठ, खून निर्दोष बहाया |
बड़ा बेहया धूर्त, नहीं हम माफ़ी देंगे |
गर फेंकेगा ईंट, मार हम पत्थर देंगें |
पहरे पर पहरे दिखें, दिखें भव्य दो द्वार |
हरदम ही तत्पर दिखें, सीमा के रखवार | सीमा के रखवार, वार पर करता दुश्मन | कर जाते घुसपैठ, रक्त रंजित कर आँगन | काट कंटीले बाड़, घाव दे जाते गहरे | अब तो नीयत ताड़, बढ़ा सीमा पर पहरे - |
दहशत में दुश्मन दिखे, पड़े *पनहियाभद्र |
"सत्य" अहिंसा प्रेम की, नहीं कभी की कद्र | नहीं कभी की कद्र, प्रपंची राग अलापे | पड़ती है जब मार, फटाफट रस्ता नापे | अदल बदल के रूप, दुष्ट करता नित हरकत | लेकिन "सिंह" दहाड़, भरे पाकी में दहशत || |
केवल कड़े बयान, यहाँ बाकी नहिं कुब्बत |
ReplyDeleteकल देते गर मार, आज नहिं होती *नौबत ||
एकदम सत्य कहा रविकर जी !
दुर्दशा कितनी करवाएंगे, यह देखना है।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
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