उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।
आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।
गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।
डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए ।
बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े ।
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥
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गिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार |
जितना यह सरकार, नरेगा नरक मचाये |
बस पनडुब्बी रेल, मील मिड डे भी खाए |
लेता फ़ाइल लील, सदन में भुक्खड़ फिरता |
मँहगाई में डील, रुपैया नेता गिरता ||
रोके से ना रोकड़ा, ले रुकने का नाम ।
रुपिया रूप कुरूप हो, मचा रहा कुहराम ।
मचा रहा कुहराम, हुआ अब राम भरोसे ।
मँहगाई की मार, गरीबी जीवन कोसे ।
कह गरीब के साथ, हाथ नित बम्बू ठोके ।
डालर हँसता जाय, रहे पर रुपिया रो के ॥
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बहुत ही सुंदर,रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteबहुत सही कहा श्रीमान
ReplyDeleteकविता
बेहतरीन सर जी बहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ,सही कहा श्रीमान
ReplyDeleteप्रभावशाली कुंडलियाँ !!
ReplyDeleteरुपया पुराण बेहतरीन रहा .
ReplyDeleteबहुत ही यथार्थ परक और सुंदर.
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