डालर डोरे डालता, अर्थव्यवस्था कैद |
पुन:विदेशी लूटते, फिर दलाल मुस्तैद-
हर दिन बढ़ता घाटा है |
झूठा कौआ काटा है |
होय कोयला लाल जो, बचे शर्तिया राख |
गायब होती फाइलें, और बचाते साख -
माँ-बेटे ने डाटा है ?
झूठा कौआ काटा है |
रहा रुपैये का बिगड़, धीरे धीरे रूप |
करे ख़ुदकुशी अन्ततः, कूदे गहरे कूप |
यूँ छाता सन्नाटा है |
झूठा कौआ काटा है ||
भोलू-भोली भूलते, रहा नहीं कुछ याद ।
याददाश्त कमजोर है, टू-जी की बकवाद ।
यह भी बिरला टाटा है ।
झूठा कौआ काटा है ||
चूर गर्व मुंबई का, करे कलंकित दुष्ट ।
शर्मिंदा फिर देश है, हुवे आम जन रुष्ट ।
पौरुषता पर चाटा है ।
झूठा कौआ काटा है ||
काट रहे चालान जो, चलते टेढ़ी चाल |
रहे कुचलते जो सदा, करते खड़े सवाल |
कार भरे फर्राटा है ।
झूठा कौआ काटा है ||
नमो नमो नरदन नयक, निश्चय नव-नरनाह ।
असुर-शक्ति की हार हो, जन जन में उत्साह ।
दुष्ट कलेजा फाटा है ।
झूठा कौआ काटा है ||
नरदन=नाद करना /गरजना
नयक=नीति में कुशल
बहुत ही सटीक और लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम.
नमो नमो।
ReplyDeleteनेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
ReplyDeleteभाद्र पट के आगमन की वधाई !!
रविकर जी !अच्छी प्रस्तुति है !!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय ''रविकर'' सर जी
ReplyDeleteहरेक अल्फ़ाज़ वास्तविकता से ओत-प्रोत, लेखनी को पढ़ मन प्रसन्न हुआ
बेहद सशक्त भाव बोध राजनीति बोध की रचना .
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