नहीं कहीं भी लगता नारा ।
पी एम चुप्पा चोर हमारा ॥
चोर चुहाड़ कमीना बोले ।
राज राज का बाहर खोले॥
सत्ता सांसद यहाँ खरीदें ।
रखे तभी जिन्दा उम्मीदें ॥
नौ दिन चले अढ़ाई माइल ।
होय काँख से गायब फ़ाइल ॥
जहाँ निकम्मे हैं अधिकारी ।
प्रवचनकर्ता तक व्यभिचारी ॥
जन गन मन मुद्रा में मस्ती ।
होती जाती मुद्रा सस्ती ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार -01/09/2013 को
ReplyDeleteचोर नहीं चोरों के सरदार हैं पीएम ! हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः10 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
गुजंलक हुई सभी देशव्यापी समस्याओं पर कितना पैना व्यंग्य वार किया है, विचारणीय।
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