रल-मिल दुर्जन लूटते, गैंग रेप कहलाय ।
हत्या कर के भी यहाँ, नाबालिग बच जाय ।
नाबालिग बच जाय, प्रवंचक साधु कहानी ।
नहीं करे वह रेप, मुखर-मुख की क्या सानी ।
छल बल *आशर बाढ़, मची काया में हलचल ।
पाता पोती दुष्ट, और अज'माता ओरल ॥
*राक्षस
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले-
टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |
नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||
बहुत सुंदर
ReplyDeleteउम्दा !
ReplyDeleteलाजवाब गुरु जी
ReplyDeleteहत्या कर के भी यहाँ, नाबालिग बच जाय ।
ReplyDeleteवाह! यह भारतीय कानून की विसंगति ही है .
बहुत सुंदर,लाजवाब प्रस्तुति,सादर .
ReplyDeleteबहुत दुखित किया है इस न्याय व्यवस्था ने। लेकिन अभी जनमानस का प्रतिकार बाकी है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एक कुंडली निराशा राम पर भी हो जाए .
ReplyDeleteमित्र !यह भी अजाब पहेली है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11
क्या न्याय है, यदि यह न्याय है तो अन्याय क्या होगा ।
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