फिर भी दिल्ली दूर है, नहीं राह आसान |
अज्ञानी खुद में रमे, परेशान विद्वान |
परेशान विद्वान, बड़े भी अपनी जिद में |
पहले निज घर ताक, ताकना फिर मस्जिद में |
डंडे से ही खेल, नहीं पायेगा गिल्ली |
आस-पास बरसात, तरसती फिर भी दिल्ली ||
(आज के राजनैतिक माहौल पर)
नीले रंग में मुहावरे हैं-
उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteपापा मेरी भी शादी करवा दो ना
क्या बात क्या बात , जबरदस्त भाव पहले निज घर ताक, ताकना फिर मस्जिद में | .. बहुत कटु यथार्थ कह दिया , काश ये समझ आये जिन्हें समझना चाहिए.
ReplyDeleteबहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
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