तब के दंगे और थे, अब के दंगे और |
हुड़दंगी सिरमौर तब, अब नेता सिरमौर |
अब नेता सिरमौर, गौर आ-जम कर करलें |
ये दंगे के दौर, वोट से थैली भर लें |
मरते हैं मर जाँय, कुचल कर बन्दे रब के |
दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके ||
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आ जम जा कुर्सी पड़ी, सिखा विधर्मी पाठ |
वोट बैंक मजबूत कर, बढ़ा चढ़ा के ठाठ |
बढ़ा चढ़ा के ठाठ, कहीं कातिल छुड़वाए |
*जटा जाय जग माहिं, जुल्म का फल भी पाए |
फिर भी गोटी लाल, लाल का करना क्या गम |
कर अफसर बर्खास्त, वजीरे आजम आ-जम ||
*ठगा जाना / धोखे में आकर हानि उठाना
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रहमत लाशों पर नहीं, रहम तलाशो व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ | अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली | जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली | करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत | रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत || |
बाकी बातें बाद में, सबसे आगे वोट |
करते हमले ओट से, खर्च करोड़ों नोट | खर्च करोड़ों नोट, चोट पीड़ा पहुँचाये | पीते जाते रक्त, माँस अपनों का खायें | अग्गी करके धूर्त, दिखाते हैं चालाकी | जाँय अंतत: हार, दिखी "पूरण" बेबाकी || |
फिर भी दिल्ली दूर है, नहीं राह आसान |
अज्ञानी खुद में रमे, परेशान विद्वान |
परेशान विद्वान, बड़े भी अपनी जिद में |
ले पहले घर देख, ताकना फिर मस्जिद में |
डंडे से ही खेल, नहीं पायेगा गिल्ली |
आस-पास बरसात, तरसती फिर भी दिल्ली ||
(आज के राजनैतिक माहौल पर)
नीले रंग में मुहावरे हैं-
सुन्दर प्रस्तुति !!
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