"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 30
कुण्डलियाँ
ढीली ढाली गुर्रियाँ, पंचेन्द्रियाँ समेत ।
कर्म-चर्म पर झुर्रियां, परिवर्तक संकेत ।
परिवर्तक संकेत, ज़रा-वय का परिवर्तन ।
हो जाऊं ना खेत, पौध हित कर लूँ चिंतन ।
बन जाए वटवृक्ष, अभी तो मिट्टी गीली ।
रविकर देखे दृश्य, डोर जीवन की ढीली ।
दोहे
दो बित्ते दो सेर की, देह सींच दे वक्त ।
चार हाथ दो मन मगर , होता गया अशक्त ॥
ज़रा पाय रविकर डरा, कहाँ मिटें यह कष्ट ।
जरा जरा देगा मिटा, होय मिटा के नष्ट ॥
सप्तधातु षड्गुण त्रिमद, षडरिपु से श्रीहीन ।
वात पित्त कफ़ कर रहे, पंचतत्व अकुलीन ।।
चौपाई
रक्त माँस रस वसा बिचारे ।
मज्जा शुक्र अस्थि भी हारे ।
श्री ऐश्वर्य ज्ञान यश धरमा ।
गुण वैराग्य गया अब शरमा ।।
छाया त्रिमद देख परिवारा ।
धन विद्या पर पारी पारा ।
काम क्रोध मद लोभ विकारा
षडरिपु सहित बने हत्यारा ॥
सप्त-धातु = रस रक्त मांस वसा अस्थि मज्जा और शुक्र
षड्गुण=ऐश्वर्य ज्ञान यश श्री वैराग्य धर्म
त्रिमद=परिवार विद्या और धन का अभिमान
षडरिपु=काम क्रोध मद लोभ आदि मनोविकार
ReplyDeleteदो बित्ते दो सेर की, देह सींच दे वक्त ।
चार हाथ दो मन मगर , होता गया अशक्त ॥
ज़रा पाय रविकर डरा, कहाँ मिटें यह कष्ट ।
जरा जरा देगा मिटा, होय मिटा के नष्ट ॥
सप्तधातु षड्गुण त्रिमद, षडरिपु से श्रीहीन ।
वात पित्त कफ़ कर रहे, पंचतत्व अकुलीन ।।
वहां पूरा विज्ञान ही समझा दिया ,चोग भोग और रोग भोग और जरायु का बुढ़ाते जाने का .
प्रिय रविकर जी ..बहुत सुन्दर रचना ..शब्दों को आप ने समझाया और आनंद आया ..ये पञ्च तत्व से बना जीवन है ही ऐसे गठरी चुराने वाले चोर लगे ही है निम्न पंक्तियाँ अति प्यारी
ReplyDeleteहो जाऊं ना खेत, पौध हित कर लूँ चिंतन ।
बन जाए वटवृक्ष, अभी तो मिट्टी गीली ।
रविकर देखे दृश्य, डोर जीवन की ढीली ।
सप्तधातु षड्गुण त्रिमद, षडरिपु से श्रीहीन ।
वात पित्त कफ़ कर रहे, पंचतत्व अकुलीन ।
बधाई ..शुभ कामनाएं सतायु चिरंजीवी भव
भ्रमर ५
उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteजय जय जय घरवाली