गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल । 
गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल । 
गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी । 
नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी । 
बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता । 
भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥
 
 
वाह। वाकई नहीं है कायम गुरु-गुरुता।
ReplyDeleteगुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी ।
ReplyDeleteनीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी ।
wah kya bat hai sundar kataksh .....badhai Ravi ji .
स्वाभिक मनोवेदना से ओत प्रोत हल्का हास्य सराहनीय मित्र !
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