पल्ले-चौखट-चौकियाँ, पहिया गाड़ी नाव |
औषधि पत्ती-फूल-फल, मिले वृक्ष से छाँव |
मिले वृक्ष से छाँव, शुद्ध कर प्राण-वायु दे |
किन्तु शहर वन गाँव, प्राणि-जग आँखे मूंदे |
खेलकूद त्यौहार, शादियाँ इसके तल्ले |
फिर क्यूँ मिटते वृक्ष, पड़े नहिं रविकर पल्ले ||
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और सटीक प्रस्तुति,आभार।
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल बुधवार (11-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 113 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसादर
bahut sundar.
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