23 October, 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता-1


कुण्डलियाँ 

रविकर नीमर नीमटर, वन्दे हनुमत नाँह ।
विषद विषय पर थामती, कलम वापुरी बाँह ।

कलम वापुरी बाँह, राह दिखलाओ स्वामी ।
शांता का दृष्टांत, मिले नहिं अन्तर्यामी ।

बहन राम की श्रेष्ठ, उपेक्षित त्रेता द्वापर ।
रचवाओ शुभ-काव्य, करे विनती अब रविकर ।

( नीमटर=किसी विद्या को कम जानने वाला 
नीमर=कमजोर ) 

सर्ग-1
भाग-1 
अयोध्या  

सोरठा  

वन्दऊँ पूज्य गणेश, एकदंत हे गजबदन  |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||

वन्दौं गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़-मति । 
गुन-गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

गोधन-गोठ प्रणाम, कल्प-वृक्ष गौ-नंदिनी |
गोकुल चारो धाम, गोवर्धन-गिरि पूजता ||3||

वेद-काल का साथ, गंगा सिन्धु सरस्वती |
ईरानी हेराथ, सरयू भी समकालिनी ||4||

राम-भक्त हनुमान, सदा विराजे अवधपुर |
सरयू होय नहान, मोक्ष मिले अघकृत तरे ||5||

 करनाली का स्रोत्र, मानसरोवर अति-निकट |
करते जप-तप होत्र, महामनस्वी विचरते ||6||

क्रियाशक्ति भरपूर, पावन भू की वन्दना |
राम भक्ति में चूर, मोक्ष प्राप्त कर लो यहाँ ||7||

सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
हरि-हर ब्रह्म सँदेश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8||

पूज्य अयुध भूपाल, रामचंद्र के पितृ-गण |
गए नींव थे डाल, बसी अयोध्या पावनी ।। 9।।

दोहा 

शुक्ल पक्ष की तिथि नवम, पावन कातिक मास |
करें नगर की परिक्रमा, मन श्रद्धा-विश्वास ||

मर्यादा आदर्श गुण, अपने हृदय उतार |
राम-लखन के सामने, लम्बी लगे कतार |।

  पुरुषोत्तम सरयू उतर, होते अंतर्ध्यान |
त्रेता युग का अवध तब, हुआ पूर्ण वीरान |।

 सद्प्रयास कुश ने किया, बसी अयोध्या वाह |
 सदगृहस्थ वापस चले, पुन: अवध की राह |।

 कृष्ण रुक्मणी अवध में, आये द्वापर काल |
पुरुषोत्तम के चरण में, गये सुमन शुभ डाल ||

कलयुग में सँवरी पुन:, नगरी अवध महान |
वीर विक्रमादित्य से, बढ़ी नगर की शान ||

देवालय फिर से बने, बने सरोवर कूप |
स्वर्ग सरीखा सज रहा, अवध नगर का रूप ||


सोरठा  

माया मथुरा साथ, काशी काँची द्वारिका |
महामोक्ष का पाथ, अवंतिका शुभ अवधपुर ||10|| 

अंतरभूमि  प्रवाह, सरयू सरसर वायु सी
संगम तट निर्वाह,  पूज घाघरा शारदा ||11||

पुरखों का इत वास, तीन कोस बस दूर है |
बचपन में ली साँस, यहीं किनारे खेलता ||12||

परिक्रमा श्री धाम, हर फागुन में हो रहा । 
पटरंगा मम-ग्राम, चौरासी कोसी परिधि ||13||

थे दशरथ महराज, उन्तालिस निज वंश के |
रथ दुर्लभ अंदाज, दशों दिशा में हांक लें ||14||

पिता-श्रेष्ठ 'अज' भूप, असमय स्वर्ग सिधारते |
 निकृष्ट कथा कुरूप, मातु-पिता चेतो सुजन  ||15||  

8 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25-10-2013) को " ऐसे ही रहना तुम (चर्चा -1409)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  2. लफ्ज़ नीमतर है भाई जैसे नीम -हकीम ,नीम -गांधी (आधा विलायती आधा देसी )

    बेहद कसावदार काव्यात्मक प्रस्तुति रूपकत्व लिए इफरात में .

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  3. शब्द नीमतर हैं यहाँ -जैसे नीम गांधी (आधा विलायती आधा देसी )बहुत सुन्दर प्रस्तुति बिम्ब और रूपकत्व लिए अभिनव।

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  4. सुंदर प्रस्‍तुति

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति !!

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  6. इस शांता कथा को बार बार पढ भी कर अच्छा ही लगता है।

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