प्रबंध काव्य का लिंक:- मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता
भाग-4
रावण, कौशल्या और दशरथ
दशरथ-युग में ही हुआ, रावण विकट महान |
पंडित ज्ञानी साहसी, कुल-पुलस्त्य का मान ||1|
शिव-चरणों में दे चढ़ा, दसों शीश को काट |
फिर भी रावण ना सका, ध्यान कहीं से बाँट । |
युक्ति दूसरी कर रहा, मुखड़ों पर मुस्कान ।
छेड़ी वीणा से मधुर, सामवेद की तान ||
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा अपार |
मिली शक्तियों से हुवे, पैदा किन्तु विकार ||
पाकर शिव-वरदान वो, पहुँचा ब्रह्मा पास |
श्रद्धा से की वन्दना, की पावन अरदास ||
ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए विकट वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, अस्त्र-शस्त्र की शान ||
शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||6||
ऐसा तो संभव नहीं, मन की गाँठे खोल |
मृत्यु सभी की है अटल, परम-पिता के बोल ||7||
कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन, काटेगा दस-माथ ||8||
क्रोधित रावण काँपता, थर-थर बदन अपार |
प्राप्त अमरता मैं करूँ, कौशल्या को मार ||9||
चेताती मंदोदरी, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला, जीवन भर संताप ||10||
रावण के निश्चर विकट, पहुँचे सरयू तीर |
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||11||
बंद पेटिका में किया, देते जल में डाल |
आखेटक दशरथ निकट, सुनते शब्द-बवाल ||12||
राक्षस-गण से जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
भागे निश्चर हारकर, नृप कूदे जल-धार ||13||
आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||14||
बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||15||
रक्तस्राव था हो रहा, भूपति थककर चूर |
पड़ी जटायू की नजर, करे मदद भरपूर ||16||
दशरथ मूर्छित हो गए, घायल फूट शरीर |
पत्र-पुष्प-जड़-छाल से, हरे जटायू पीर ||17||
भूपति आये होश में, असर किया संलेप |
गिद्धराज के सामने, कथा कही संक्षेप ||18||
कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||19||
बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||20||
कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||21||
बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||22||
नारद जी भवितव्य का, रखते पूरा ध्यान ।
दोनों को उपदेश दे, दूर करें अज्ञान ।|23||
नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत || 24||
नव-दम्पति को ले उड़े, गिद्धराज खुश होंय |
नारद जी चलते बने, भावी कड़ी पिरोय || 25||
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||26||
पंडित ज्ञानी साहसी, कुल-पुलस्त्य का मान ||1|
शिव-चरणों में दे चढ़ा, दसों शीश को काट |
फिर भी रावण ना सका, ध्यान कहीं से बाँट । |
युक्ति दूसरी कर रहा, मुखड़ों पर मुस्कान ।
छेड़ी वीणा से मधुर, सामवेद की तान ||
मिली शक्तियों से हुवे, पैदा किन्तु विकार ||
पाकर शिव-वरदान वो, पहुँचा ब्रह्मा पास |
श्रद्धा से की वन्दना, की पावन अरदास ||
ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए विकट वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, अस्त्र-शस्त्र की शान ||
शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||6||
ऐसा तो संभव नहीं, मन की गाँठे खोल |
मृत्यु सभी की है अटल, परम-पिता के बोल ||7||
कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन, काटेगा दस-माथ ||8||
क्रोधित रावण काँपता, थर-थर बदन अपार |
प्राप्त अमरता मैं करूँ, कौशल्या को मार ||9||
चेताती मंदोदरी, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला, जीवन भर संताप ||10||
रावण के निश्चर विकट, पहुँचे सरयू तीर |
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||11||
बंद पेटिका में किया, देते जल में डाल |
आखेटक दशरथ निकट, सुनते शब्द-बवाल ||12||
राक्षस-गण से जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
भागे निश्चर हारकर, नृप कूदे जल-धार ||13||
आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||14||
बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||15||
रक्तस्राव था हो रहा, भूपति थककर चूर |
पड़ी जटायू की नजर, करे मदद भरपूर ||16||
दशरथ मूर्छित हो गए, घायल फूट शरीर |
पत्र-पुष्प-जड़-छाल से, हरे जटायू पीर ||17||
भूपति आये होश में, असर किया संलेप |
गिद्धराज के सामने, कथा कही संक्षेप ||18||
कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||19||
बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||20||
कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||21||
बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||22||
नारद जी भवितव्य का, रखते पूरा ध्यान ।
दोनों को उपदेश दे, दूर करें अज्ञान ।|23||
नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत || 24||
नव-दम्पति को ले उड़े, गिद्धराज खुश होंय |
नारद जी चलते बने, भावी कड़ी पिरोय || 25||
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||26||
वाह क्या सुन्दरतम सृजन है!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब गुरु जी
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