28 October, 2013

रावण, कौशल्या और दशरथ : भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन

प्रबंध काव्य का लिंक:- मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता

भाग-4
रावण, कौशल्या और दशरथ

दशरथ-युग में ही हुआ, रावण विकट महान |
पंडित ज्ञानी साहसी, कुल-पुलस्त्य का मान ||1|

 शिव-चरणों में दे चढ़ा, दसों शीश को काट  |
 फिर भी रावण ना सका, ध्यान कहीं से बाँट । |

युक्ति दूसरी कर रहा, मुखड़ों पर मुस्कान ।
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||
  
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा अपार |
मिली शक्तियों से हुवे,  पैदा किन्तु विकार ||

पाकर शिव-वरदान वो, पहुँचा ब्रह्मा पास |
श्रद्धा से की वन्दना, की पावन अरदास ||

ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए विकट वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, अस्त्र-शस्त्र की शान ||

शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||6||

ऐसा तो संभव नहीं, मन की गाँठे खोल |
मृत्यु सभी की है अटल, परम-पिता के बोल ||7||

कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन,  काटेगा दस-माथ ||8||

 क्रोधित रावण काँपता, थर-थर बदन अपार |
प्राप्त अमरता 
मैं करूँ, कौशल्या को मार ||9||

चेताती  मंदोदरी, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला, जीवन 
भर संताप ||10||

रावण के  निश्चर विकट,  पहुँचे  सरयू तीर |
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||11||

बंद पेटिका में किया, देते जल में डाल |
आखेटक दशरथ निकट, सुनते शब्द-बवाल  ||12||

राक्षस-गण से 
जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
 भागे निश्चर हारकर,  नृप कूदे जल-धार ||13||

आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||14||

बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||15||

रक्तस्राव था हो रहा, भूपति थककर चूर |
पड़ी जटायू  की नजर,  करे मदद भरपूर  ||16||

 दशरथ मूर्छित हो गए, घायल फूट शरीर |
पत्र-पुष्प-जड़-छाल से, हरे जटायू  पीर ||17||

भूपति आये होश में, असर किया संलेप |
गिद्धराज के सामने, कथा कही संक्षेप ||18||

कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||19||

बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||20||

कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||21||

बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||22||

नारद जी भवितव्य का, रखते  पूरा ध्यान ।
दोनों को उपदेश दे,  दूर करें अज्ञान ।|23||

नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत || 24||

नव-दम्पति को ले उड़े,  गिद्धराज खुश होंय |
नारद जी चलते बने, भावी  कड़ी पिरोय || 25||

अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||26||

2 comments:

  1. वाह क्‍या सुन्‍दरतम सृजन है!

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  2. वाह बहुत खूब गुरु जी

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