![](http://api.ning.com/files/Cr*mNN-mhgYRNQauoL6nFhmcmow7EHjdoHJBt9tRH3gw9r10vRp*ITbLXPB9E06FnB6BuBM4Y2sz*0lUexLTvbb4z6-a3LCg/antsworkingasateam.jpg?width=375)
मदिरा सवैया ( भगण X 7 + S )
पञ्च पिपीलक पिप्पल पेड़ पहाड़ समान उठावत है ।
जीत लिया जब भूमि नई, तरु से दुइ दीप मिलावत हैं ।
दुर्गम मार्ग रहा बरसों कल सों शुभ राह बनावत है।
रानि निगाह रखे उन पे जिनके हित काम करावत है ।
दुर्मिळ सवैया (सगण x 8)
इस ओर गरीब-फ़क़ीर बसे, उस ओर अमीर-रईस जमा।
जनतंतर जंतर-मंतर से, कुछ अंतर भेद न छेद कमा ।
सरकार रही सरकाय समा, जन नायक मस्त स्वमेव रमा ।
इन चींटिन सा सदुपाय करो, करिये उनको मत आज क्षमा |
वाह जननायकों की मस्ती को धारदार व्यंग्य से प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबेहतरीन, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
पञ्च पिपीलक पिप्पल पेड़ पहाड़ समान उठावत है ।
ReplyDeleteजीत लिया जब भूमि नई, तरु से दुइ दीप मिलावत हैं ।
दुर्गम मार्ग रहा बरसों कल सों शुभ राह बनावत है।
रानि निगाह रखे उन पे जिनके हित काम करावत है ।
बहुत खूब रविकर जी .