टोपी बिन पहचान में, नहीं आ रहे आप |
लगे अवांछित आम जन, अपना रस्ता नाप |
अपना रस्ता नाप, शाप है धरती माँ का |
बको अनाप-शनाप, भिड़ेगा तब ही टाँका |
चतुर करेगा राज, होय चाहे आरोपी |
डुबकी आप लगाय, लगा लो बस यह टोपी ||
पाय खुला भू-फलक, नहीं अब "आप" छकाना -
काना राजा भी भला, हम अंधे बेचैन |
सहमत हम सब मतलबी, प्यासे कब से नैन |
प्यासे कब से नैन, सात सौ लीटर पानी |
गै पानी मा भैंस, शर्त की की नादानी |
सत्ता को अब तलक, मात्र मारा है ताना |
पाय खुला भू-फलक, नहीं अब "आप" छकाना |
सुन्दर प्रस्तुति मारक संहारक .
ReplyDeleteप्यासे कब से नैन, सात सौ लीटर पानी |
गै पानी मा भैंस, शर्त की की नादानी |
विडंबना से ग्रसित हो गया है राजनीति का अखाड़ा।
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