दिल्लीवाले बह गए, सुनकर आप अलाप |
झारखण्ड देता बना, आज आप से आप |
आज आप से आप, दिखे कीचड़ ही कीचड़ |
लटके-झटके व्यर्थ, चतुर्दिश कामी लीचड़ |
अब सरकार त्रिशंकु, कहाँ डंडा कित गिल्ली |
पाँच साल में देख, चार-छह सी एम् दिल्ली ||
कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल की, है उम्मीद त्रिशंकु | है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा | करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा | ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे | कीचड़ तो तैयार, मगर क्या कमल खिलेंगे--
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta
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मकार से वाकई बहुत कीचड़ तैयार हो गया है लेकिन सवाल वही कि क्या कमल इसमें खिल पाएंगे? जबर्दस्त प्रहार रविकर जी।
ReplyDeletehttp://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ के शुक्रवारीय ६/१२/१३ अंक में आपकी रचना को शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकनार्थ पधारे ............धन्यवाद
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