भन्नाता बिन्नी दिखा, सुस्ताता अरविन्द |
उकसाता योगेन्द जब, उकताता यह हिन्द |
उकताता यह हिन्द, मुफ्तखोरों की दुनिया |
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया |
दीन-हीन सरकार, विपक्षी है चौकन्ना |
टपकाए नित लार, जाय रविकर जी भन्ना ||
लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान |
है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |
गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा |
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा ||
लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान |
है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |
गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा |
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा ||
जबर्दस्त।
ReplyDeleteहै बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
ReplyDeleteगिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |
सत्य वचन।