"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34
दोहा
मेटे दारिद दारिका, भेंटे दुर्गा मातु ।
सुता पुत्र पति पालती, रख अक्षुण्ण अहिवातु ॥
मुखड़े पर जो तेज है, रखिये सदा सहेज ।
षोडशभुजा विराजिये, कंकड़ की शुभ-सेज ।
पहन काँच की चूड़ियाँ, बेंट काठ की थाम ।
लोहा लेने चल पड़ी, शस्त्र चला अविराम ॥
छुई-मुई अबला नहीं, नहीं निराला-कोटि ।
कोटि कोटि कर खेलते, बना शैल की गोटि ॥
हाव-भाव संतुष्टि के, ईंटा पत्थर खाय ।
कुल्ला कर आराम से, पानी पिए अघाय ।
रोला
पानी पिए अघाय, परिश्रम हाड़तोड़ कर ।
गैंता तसला हाथ, प्रभावित करते रविकर ।
थक कर होय निढाल, ढाल के संरचनाएं |
पाले घर-संसार, आज माँयें जग माँयें ||
थक कर होय निढाल, ढाल के संरचनाएं |
ReplyDeleteपाले घर-संसार, आज माँयें जग माँयें ||
................................................वाह।