16 July, 2014

क्यों हाफिज के द्वार, साधने जाते हाथी -

हाथी पर बैठे कहीं, कहीं कटाये माथ |
हैं अजीब सी यह जुबाँ, लगा लगामी साथ |

लगा लगामी साथ, कहीं पर फूल झड़े हैं |
कहीं कतरनी तेज, सैकड़ों कटे पड़े हैं |

साधो वैदिक रीति, बनो तुम सज्जन साथी |
क्यों हाफिज के  द्वार, साधने जाते हाथी ॥ 

7 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (18.07.2014) को "सावन आया धूल उड़ाता " (चर्चा अंक-1678)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. बहुत सार्थक सामयिक कुण्डलियाँ !

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  3. वाह !!
    मंगलकामनाएं आपको !

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  4. बनो तुम सज्जन साथी।
    सही कहा।

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  5. अच्छा कटाक्ष है।
    प्रासंगिक बन पड़ा है।

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  6. बहुत सार्थक सामयिक कुण्डलियाँ !

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