बजट से पहले हलुआ
अमर उजाला
तलुआ चप्पल के घिसे, पिसे सदा दिन-रात |
रक्त-स्वेद दोनों रिसे, धत गरीब की जात |
धत गरीब की जात, नहीं औकात हमारी |
कबहूँ नहीं अघात, घात हम पर सरकारी |
कह रविकर कविराय, चाटते नेता हलुआ |
चमचे भी दो चार, चटाते चाटे तलुआ ||
नेताओं की तो बात ही क्या है ...
ReplyDeleteनेता और चमचों के पेट कभी नहीं भरता...
ReplyDeleteबहुत खूब!
क्या बात, बहुत सुंदर
ReplyDeleteरेल बजट में नहीं दिखा 56 इँच का सीना !
http://aadhasachonline.blogspot.in/
क्या बात है ..... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteभोर करी पदयात्रा गाँव की, फूलन के लिए हार सलोने
ReplyDeleteटीवी में देख छवि अपनी ,मुस्काय चले प्रभु चैन से सोने
ReplyDeleteबहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब -चमचे भी दो चार चटाते तलुवा
नेता मेरा भडुवा
बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत ही बढिया
ReplyDeleteबहुत सुदर, सटीक और सामयिक।
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