15 September, 2014

दिखा रहे सद्मार्ग, कुटिल कवि रविकर भाई-

सच्चाई दम-भर लड़ी, लेकिन *चाँई जीत |
रही हार हरदम बड़ी, क्यों ना हो भयभीत ?

क्यों ना हो भयभीत, बोलबाला दुनिया में |
अब अपनाय अनीत, ध्वजा हाथो में थामे |

दिखा रहे सद्मार्ग, कुटिल कवि रविकर भाई |
जियो मित्र बिंदास, छोड़ कर के सच्चाई ||
*ठग, कपटी, छली

(2)

हर-दम ही धुर चाइयाँ, जाय जंग जब जीत |
दम-भर लड़ सच्चाइयाँ, जा छुपती भयभीत |

जा छुपती भयभीत, मीत भी साथ छोड़ते |
यह व्यवहारिक रीत, मनोबल आस तोड़ते |

कह रविकर कुटिलाय, रहे जीवन भर बम बम | 
सच्चाई दे छोड़, चकाचक *चाँई  हरदम ||

*ठग, कपटी, छली

2 comments:

  1. वाह ....बेहतरीन

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  2. वाह, चाँईं ही जीतते हैं आज कल तो। सत्य की जीत तो बस किताबों में।

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