सच्चाई दम-भर लड़ी, लेकिन *चाँई जीत |
रही हार हरदम बड़ी, क्यों ना हो भयभीत ?
क्यों ना हो भयभीत, बोलबाला दुनिया में |
अब अपनाय अनीत, ध्वजा हाथो में थामे |
दिखा रहे सद्मार्ग, कुटिल कवि रविकर भाई |
जियो मित्र बिंदास, छोड़ कर के सच्चाई ||
*ठग, कपटी, छली
(2)
हर-दम ही धुर चाइयाँ, जाय जंग जब जीत |
दम-भर लड़ सच्चाइयाँ, जा छुपती भयभीत |
जा छुपती भयभीत, मीत भी साथ छोड़ते |
यह व्यवहारिक रीत, मनोबल आस तोड़ते |
कह रविकर कुटिलाय, रहे जीवन भर बम बम |
सच्चाई दे छोड़, चकाचक *चाँई हरदम ||
*ठग, कपटी, छली
(2)
हर-दम ही धुर चाइयाँ, जाय जंग जब जीत |
दम-भर लड़ सच्चाइयाँ, जा छुपती भयभीत |
जा छुपती भयभीत, मीत भी साथ छोड़ते |
यह व्यवहारिक रीत, मनोबल आस तोड़ते |
कह रविकर कुटिलाय, रहे जीवन भर बम बम |
सच्चाई दे छोड़, चकाचक *चाँई हरदम ||
*ठग, कपटी, छली
वाह ....बेहतरीन
ReplyDeleteवाह, चाँईं ही जीतते हैं आज कल तो। सत्य की जीत तो बस किताबों में।
ReplyDelete