खूनी धरती झेलती, युगों युगों का शाप ।
काले झंडे के तले, रही मनुजता काँप ।
रही मनुजता काँप, क़त्ल कर जश्न मनाता।
बग़दादी का वार, गोश्त जिन्दों का खाता ।
वह दारुल इस्लाम, किन्तु हैं लोग जुनूनी ।
गैर धर्म कर साफ़, खेल फिर खेलें खूनी ॥
सटीक !!
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeleteरक्त-बीज कहें तो कैसा रहे !
ReplyDeleteवह दारुल इस्लाम, किन्तु हैं लोग जुनूनी ।गैर धर्म कर साफ़, खेल फिर खेलें खूनी ॥....behtareen
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! यथार्थ है !
ReplyDeleteसाफ़ साफ़ सटीक शब्दों की बयानी ...
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति अपने वक्त से संवाद करती हुई .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसही कहा, सुंदर कहा।
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