चढ़े सफलता शीश पे, करे साधु भी गर्व।
कलाकार, गृह-स्वामिनी, मान चाहते सर्व।
कलाकार, गृह-स्वामिनी, मान चाहते सर्व।
मान चाहते सर्व, नहीं अपमान सह सके ।
कलाकार तब मौन, साधु से गुस्सा टपके ।
सबका अपना ढंग, किन्तु गृहिणी का खलता।
रो लेती चुपचाप, नहीं सिर चढ़े सफलता।
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteअच्छी वर्जना।
सुंदर प्रस्तुति। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ, सादर।
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDelete