30 December, 2014

मान चाहते सर्व, नहीं अपमान सह सके-

चढ़े सफलता शीश पे, करे साधु भी गर्व। 
कलाकार, गृह-स्वामिनी, मान चाहते सर्व। 

मान चाहते सर्व, नहीं अपमान सह सके । 
कलाकार तब मौन, साधु से गुस्सा टपके । 

सबका अपना ढंग, किन्तु गृहिणी का खलता। 
रो लेती चुपचाप, नहीं सिर चढ़े सफलता। 

4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति।
    अच्छी वर्जना।

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  2. सुंदर प्रस्तुति। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ, सादर।

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  3. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
    ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
    इसी कामना के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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