नहीं शाम में देर है, फिर भी करे बवाल ।
काल-रात्रि सिर पर खड़ी, करती खड़े सवाल।
करती खड़े सवाल, होय हरबार सवेरा।
लगा रहा रे जीव, युगों से जग का फेरा ।
इन्तजार दे छोड़, लगो अब इंतजाम में ।
होगा काम-तमाम, देर अब नहीं शाम में ।।
(2)
समय प्रबंधन चाहता, जीतो कहे भविष्य |
करो कमाई धन कहे, देखो सुन्दर दृश्य |
देखो सुन्दर दृश्य, कैलेंडर कहे पलटिये |
लेकिन कहते कृष्ण, रात दिन जम के खटिये |
रविकर कर विश्वास, देखिये दुनिया प्रभुमय |
जाय जिंदगी जीत, होय न विस्मय असमय ||
(2)
समय प्रबंधन चाहता, जीतो कहे भविष्य |
करो कमाई धन कहे, देखो सुन्दर दृश्य |
देखो सुन्दर दृश्य, कैलेंडर कहे पलटिये |
लेकिन कहते कृष्ण, रात दिन जम के खटिये |
रविकर कर विश्वास, देखिये दुनिया प्रभुमय |
जाय जिंदगी जीत, होय न विस्मय असमय ||
बहुत सुंदर और सार्थक रचना...
ReplyDeleteबिलकुल।
ReplyDeleteबढ़िया :)
ReplyDeleteनहीं शाम में देर है, फिर भी करे बवाल..... waah
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteदिन तो बीत गया जीवन का,
ReplyDeleteशाम ढले फिर रात पिया रे..........
सार्थक रचना...
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