सच्चा सौदागर बिका, सच्चा सौदा नाय ।
इस झूठे बाजार में, झूठा माल बिकाय॥
भाँय भाँय करता भवन, किन्तु भाय ना भाय ।
जब लुभाय ससुरारि तब, माँ भी धक्का खाय ॥
गैरों ने काटा गला, झटपट काम-तमाम ।
अपने तो रेता किये, लिए एक ही काम ॥
खोटे सिक्के चल रहे, गजब तेज रफ़्तार |
गया जमाना यूँ बदल, इक्के भी बेकार ||
जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक |
मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ||
सही कहा है।
ReplyDeleteभाँय भाँय करता भवन, किन्तु भाय ना भाय ।
ReplyDeleteजब लुभाय ससुरारि तब, माँ भी धक्का खाय ॥
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ज़बर्दस्त कटाक्ष है वर्त्तमान सामाजिक अवस्था पर!!
ReplyDeleteसार्थक दोहावली।
ReplyDeleteआज देहरादून में हूँ। कल घर पहुँच जाऊँगा।
हाँ और ये भी मती पूछो रै तू आदमी है की जिनावर.....
ReplyDeleteबहुत सटीक दोहे...
ReplyDeleteबहुत खूब सर जी।
ReplyDeleteबहुत खूब सर जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सटीक दोहे
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जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक |
ReplyDeleteमजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ||
बहुत खूब !
आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
धन्यवाद, रविकर जी। आशा है भविष्य में भी आप मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे।शुभ रात्रि।
ReplyDeleteबहुत खूब कही रविकर भाई .मुबारक .
ReplyDeleteबहुत खूब कही रविकर भाई .मुबारक .
ReplyDeleteउत्तम रचना .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे1
ReplyDeletesunder bhaav
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