(१)
चाहे जैसे धन मिले, रहे निधन तक चाह |
निर्धन होवे या धनी, कहाँ करें परवाह ||
(२)
नहीं हड्डियां जीभ में, पर ताकत भरपूर |
तुड़वा सकती हड्डियां, देखो कभी जरूर ||
(३)
जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक |
मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ||
(४)
ओवर-कॉन्फिडेंट हैं, इस जग के सब मूढ़ |
विज्ञ दिखे शंकाग्रसित, यही समस्या गूढ़ ||
(५)
मंगलमय नव-वर्ष हो, आध्यात्मिक उत्कर्ष ।
बढे मान हर सुख मिले, विकसे भारत वर्ष ॥
(6)
बहुत व्यस्त हूँ आजकल, कहने का क्या अर्थ |
अस्त-व्यस्त तुम वस्तुत:, समय-प्रबंधन व्यर्थ ||
(7)
पक्के निर्णय क्यूँ करें, जब कच्चा अहसास।
कच्चे निर्णय क्यूँ करें, जब तक पक्की आस।।
बहुत व्यस्त हूँ आजकल, कहने का क्या अर्थ |
अस्त-व्यस्त तुम वस्तुत:, समय-प्रबंधन व्यर्थ ||
(7)
पक्के निर्णय क्यूँ करें, जब कच्चा अहसास।
कच्चे निर्णय क्यूँ करें, जब तक पक्की आस।।
सार्थक दोहे आदरणीय रविकर जी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteनहीं हड्डियां जीभ में, पर ताकत भरपूर | तुड़वा सकती हड्डियां, देखो कभी जरूर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया