चाटुकारिता से चतुर, करें स्वयं को सिद्ध |
इसी पुरानी रीति से, माँस नोचते गिद्ध ||
अपने पे इतरा रहे, तीन ढाक के पात |
तुल जाए तुलसी अगर, दिखला दे औकात ||
बहुत व्यस्त हूँ आजकल, कहने का क्या अर्थ |
अस्त-व्यस्त तुम वस्तुत:, समय-प्रबंधन व्यर्थ ||
पक्के निर्णय क्यूँ करें, जब कच्चा अहसास।
कच्चे निर्णय क्यूँ करें, जब तक पक्की आस।।
नहीं हड्डियां जीभ में, पर ताकत भरपूर |
तुड़वा सकती हड्डियां, देखो कभी जरूर ||
नहीं सफाई दो कहीं, यही मित्र की चाह |
शत्रु करे शंका सदा, करो नहीं परवाह ||
बंधी रहे उम्मीद तो, कठिन-समय भी पार |
सब अच्छा होगा कहे, यही जीवनाधार ||
करे बुराई विविधि-विधि, जब कोई शैतान |
चढ़ी महत्ता आपकी, उसके सिर पहचान ||
कुण्डलियाँ छंद
गलती होने पर करो, दिल से पश्चाताप |
हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप |
हरगिज नहीं प्रलाप, हवाला किसका दोगे |
जौ-जौ आगर विश्व, हँसी का पात्र बनोगे |
ऊर्जा-शक्ति सँभाल, नहीं दुनिया यूँ चलती |
तू-तड़ाक बढ़ जाय, जीभ फिर जहर उगलती ||
नहीं हड्डियां जीभ में, पर ताकत भरपूर |
तुड़वा सकती हड्डियां, देखो कभी जरूर ||
नहीं सफाई दो कहीं, यही मित्र की चाह |
शत्रु करे शंका सदा, करो नहीं परवाह ||
बंधी रहे उम्मीद तो, कठिन-समय भी पार |
सब अच्छा होगा कहे, यही जीवनाधार ||
करे बुराई विविधि-विधि, जब कोई शैतान |
चढ़ी महत्ता आपकी, उसके सिर पहचान ||
कुण्डलियाँ छंद
गलती होने पर करो, दिल से पश्चाताप |
हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप |
हरगिज नहीं प्रलाप, हवाला किसका दोगे |
जौ-जौ आगर विश्व, हँसी का पात्र बनोगे |
ऊर्जा-शक्ति सँभाल, नहीं दुनिया यूँ चलती |
तू-तड़ाक बढ़ जाय, जीभ फिर जहर उगलती ||
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteऔर
बहुत सही भी
सादर
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (29.01.2016) को "धूप अब खिलने लगी है" (चर्चा अंक-2236)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 29 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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