सत्ता की खातिर जिसे, वोटों की दरकार |
जाति-धर्म में बाँट के, लगा रहा दरबार |
लगा रहा दरबार, ग्राम-चौपाल लजाये |
घाट घाट का आज, वही पानी पिलवाये |
लोकतंत्र की मार, अभी बाकी अलबत्ता |
नेता करें शिकार, चाहिए रविकर सत्ता ||
दोहा
छलिया तूने हाथ में, खींची कई लकीर |
उनको ही समझा किया, मैं अपनी तक़दीर ||
छलिया तूने हाथ में, खींची कई लकीर |
उनको ही समझा किया, मैं अपनी तक़दीर ||
राष्ट्रीय पक्षी पशु और चरित्र ।
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