01 February, 2016
कह रविकर कविराय, पचे सुख भोजन पैसा
पैसा भोजन सुख पचे, सही रहेंगे आप |
अहंकार चर्बी बढ़े, बढ़े अन्यथा पाप |
बढ़े अन्यथा पाप, भूख तोड़े मर्यादा |
मानवता विसराय, बढ़े गर पैसा ज्यादा |
अचना पचना ठीक, बना लो जीवन ऐसा |
कह रविकर कविराय, पचे सुख भोजन पैसा ||
1 comment:
सुशील कुमार जोशी
1 February 2016 at 22:14
पचने पचाने की वो सोचें जो जमा किया खा पायें
खाने की किसे पड़ी जमा पर जमा किये जो जायें ।
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पचने पचाने की वो सोचें जो जमा किया खा पायें
ReplyDeleteखाने की किसे पड़ी जमा पर जमा किये जो जायें ।