(1)
पूछे मोती लाल से, भैया हीरा लाल |
पूछे मोती लाल से, भैया हीरा लाल |
रहा बदलता इस तरह, क्यूँ मालिक हर साल |
क्यूँ मालिक हर साल, बाल की खाल निकाले |
सुनकर सरल सवाल, दिखाकर बोला ताले |
यह मानव की जात, जगत में आया छूछे |
नहीं कफ़न में जेब, करे क्या ? मोती पूछे ||
(2)
ठेला पर सब्जी रखे, बेंचे बालक नेक |
पालक है क्या? पूँछता, था भलमानुष एक |
था भलमानुष एक, अगर पालक ही होता |
मैं बेचारा बोझ, यहाँ आकर क्यूँ ढोता |
कह रविकर कविराय, कमाऊ पूत अकेला |
पालूं मैं परिवार, लगा सब्जी का ठेला ||
दोहा
निर्भरता नैराश्य दे, उचित सदा सहयोग |
सदा आत्म-निर्भर रहो, करो स्वयं उद्योग ||
सदा आत्म-निर्भर रहो, करो स्वयं उद्योग ||
मालिक की मालिक जाने मालिक :)
ReplyDeleteवाह ...दोनों ही कटाक्ष दिल को छूने वाले
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