01 March, 2016

बाल पहेलियाँ

भर आये बरसात बिन, किन्तु नहीं तालाब । 
पलक झपकते ही करे, रविकर पूरे ख़्वाब ।। 
है खतरे में तेरी साख ॥ 

दुनिया में बोई गई, किन्तु नहीं वह बीज । 
जहरीला फल उपजता, खाकर होती खीज । 
आपस में ही आज ठनी । 

बोले सिलने के लिए, किन्तु नहीं है वस्त्र । 
त्रस्त हुवे वे आप से, उठा रहे फिर शस्त्र । 
खाया कर तू सोंठ ।  

सखी नहीं वह आपकी, किन्तु जाय जब रूठ । 
बढ़ें कष्ट जिंदगी में, नहीं बोलता झूठ । 
किन्तु काम आये तब हिम्मत ।

हो जाए बेकार सब, लग जाती जब जंग । 
लेकिन लोहा है नहीं, नहीं मूर्ख के संग । 
गंगाजल कर देता शुद्धि । 

घायल हो जाए अगर, रहे तड़पता वीर । 
घाव बहुत गहरा करे,  लेकिन नहीं शरीर । 
उत्तर है बिलकुल आसान । 

रविकर वह जाता बदल, मौसम सा हर रोज । 
सर्दी गर्मी देखिये, इधर उधर मत खोज । 
उत्तर झटपट लेगा जान ॥ 



1 comment:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....

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