भर आये बरसात बिन, किन्तु नहीं तालाब ।
पलक झपकते ही करे, रविकर पूरे ख़्वाब ।।
है खतरे में तेरी साख ॥
दुनिया में बोई गई, किन्तु नहीं वह बीज ।
जहरीला फल उपजता, खाकर होती खीज ।
आपस में ही आज ठनी ।
बोले सिलने के लिए, किन्तु नहीं है वस्त्र ।
त्रस्त हुवे वे आप से, उठा रहे फिर शस्त्र ।
खाया कर तू सोंठ ।
सखी नहीं वह आपकी, किन्तु जाय जब रूठ ।
बढ़ें कष्ट जिंदगी में, नहीं बोलता झूठ ।
किन्तु काम आये तब हिम्मत ।
हो जाए बेकार सब, लग जाती जब जंग ।
लेकिन लोहा है नहीं, नहीं मूर्ख के संग ।
गंगाजल कर देता शुद्धि ।
घायल हो जाए अगर, रहे तड़पता वीर ।
घाव बहुत गहरा करे, लेकिन नहीं शरीर ।
उत्तर है बिलकुल आसान ।
रविकर वह जाता बदल, मौसम सा हर रोज ।
सर्दी गर्मी देखिये, इधर उधर मत खोज ।
उत्तर झटपट लेगा जान ॥
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDelete