प्यास बुझी ना बावली, किया वारुणी पान ।
हुआ बावला इस कदर, भूल गया पहचान ।।
प्यास बुझी ना बावली, रत्नाकर के पास ।
रविकर अति-लावण्यता, उड़ा रही उपहास ।।
प्यास बुझी ना बावली, बैठ घास पर जाय ।
उड़ते उड़ते ओस कण, जाते होश उड़ाय।।
प्यास बुझी ना बावली, मंदिर में घुसपैठ ।
चरणामृत का पान कर, प्रभु चरणों में बैठ ।।
प्यास बुझी ना बावली, होता गया अधीर ।
धीरे धीरे हो गई, पर्वत जैसी पीर ।।
प्यास बुझी ना बावली, करता रहा उपाय।
वृद्धाश्रम को देख के, रविकर गया अघाय |
प्यास बुझी ना बावली, लेता बच्ची गोद |
अश्रु-पान रविकर करे, छाया मंगलमोद ||
वाह
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