19 September, 2016

रविकर के दोहे

अजगर सो के साथ में, रोज नापता देह।
कर के कल उदरस्थ वह, सिद्ध करेगा नेह।।

नेह-जहर दोपहर तक, हहर हहर हहराय।
देह जलाये रात भर, फिर दिन भर भरमाय।।

शूकर उल्लू भेड़िया, गरुड़ कबूतर गिद्ध।
घृणा मूर्खता क्रूरता, अति मद काम निषिद्ध।।

भरा भरोसे से मनुज, झेल रहा अवसाद।
धूल झोंक के आँख में, बिहस रहा उस्ताद।।

अदा अदावत की दिखी, खा दावत भरपूर।
अदा अदालत में करे, यह लत मूल्य जरूर।

उकसाने की वह अदा, प्रशंसनीय है मित्र।
लाजवाब लेकिन गिला, चित्र चरित्र विचित्र।।

लम्बी वार्तालाप की, चुने पंक्तियां चन्द।
धमकी की रविकर अदा, आई नहीं पसन्द।।

जर-जमीन निगला मगर, बुझे नहीं यह प्यास |

है गरीब का खून तो, दे दो तीन गिलास ||

3 comments:

  1. बढ़िया दोहे हमेशा की तरह ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-09-2016) को "एक खत-मोदी जी के नाम" (चर्चा अंक-2472) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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