बुरा-भला खोटी खरी, क्षमा करूँ अज्ञान।
अगर जान लेते मुझे, मियाँ छिड़कते जान।।
उड़ो नहीं ज्यादा मियां, धरो धरा पर पैर।
गुरु-गुरूर देगा गिरा, उड़ो मनाते खैर ।।
कच्चे घर सच्चे मनुज, गये समय की बात।
रहे घरौंदे जो बना, उन्हें बचा ले तात।।
आगे पीछे बगल में, आशा अनुभव सत्य।।
दिल में दृढ़-विश्वास यदि, मिले शर्तिया लक्ष्य।।
लिए संग पासंग वह, रहा उसी से तोल।
इस पलड़े से बेच दे, ले उससे बिन-मोल।।
अगर जान लेते मुझे, मियाँ छिड़कते जान।।
उड़ो नहीं ज्यादा मियां, धरो धरा पर पैर।
गुरु-गुरूर देगा गिरा, उड़ो मनाते खैर ।।
कच्चे घर सच्चे मनुज, गये समय की बात।
रहे घरौंदे जो बना, उन्हें बचा ले तात।।
आगे पीछे बगल में, आशा अनुभव सत्य।।
दिल में दृढ़-विश्वास यदि, मिले शर्तिया लक्ष्य।।
लिए संग पासंग वह, रहा उसी से तोल।
इस पलड़े से बेच दे, ले उससे बिन-मोल।।
वाह सुन्दर दोहे ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-09-2016) को "जागो मोहन प्यारे" (चर्चा अंक-2475) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया दोहे
ReplyDeleteबढ़िया दोहे
ReplyDeleteनमन ! बहुत सुन्दर दोहे
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