संसाधन का कर रहे, जो बेजा उपयोग |
महंगाई पर चुप रहें, वे दुष्कर्मी लोग ||
दुश्मन घुसा दिमाग में, करे नियंत्रित सोच।
जगह दीजिए दोस्त को, दिल में नि:संकोच।।
वक्त बदलने पर अगर, बदल जाय विश्वास।
रिश्ते में ही खोट है, रविकर भर उच्छवास।।
घर जल भोजन में करे, यदि प्रभु-भक्ति प्रवेश।
मन्दिर, चरणामृत बने, कटे भोग से क्लेश।
कटे भोग से क्लेश, कर्म कहलाये पूजा ।
यही भक्ति की शक्ति , गीत कीर्तन बन गूंजा।
अनुभव जब यह भक्ति, करे रविकर का अन्तर ।
वह मानव बन जाय, शान्ति-सुख छाये घर घर।
महंगाई पर चुप रहें, वे दुष्कर्मी लोग ||
दुश्मन घुसा दिमाग में, करे नियंत्रित सोच।
जगह दीजिए दोस्त को, दिल में नि:संकोच।।
हिचक बनी अब हिचकियाँ, मन हिचकोले खाय।
खोले मन का भेद तो, बिखर जिंदगी जाय।।
खोले मन का भेद तो, बिखर जिंदगी जाय।।
हिचक बनेगी हिचकियाँ, ले जायेगा गैर।
इधर बचेंगी सिसकियॉ, सतत् मनाती खैर।।
इधर बचेंगी सिसकियॉ, सतत् मनाती खैर।।
वक्त बदलने पर अगर, बदल जाय विश्वास।
रिश्ते में ही खोट है, रविकर भर उच्छवास।।
कुंडलियां
हंस हंसिनी से कहे, यह प्रदेश वीरान।
भरे पड़े उल्लू यहां, जल्दी भरो उड़ान।
जल्दी भरो उड़ान, टोक दे उल्लू सुनकर।
मेरी पत्नी छोड़, कहां ले चला उड़ाकर।
रविकर बढ़ा विवाद, पंच की बजी रागिनी।
उल्लू जाये जीत. रहे रो हंस हंसिनी ।
हंस हंसिनी से कहे, यह प्रदेश वीरान।
भरे पड़े उल्लू यहां, जल्दी भरो उड़ान।
जल्दी भरो उड़ान, टोक दे उल्लू सुनकर।
मेरी पत्नी छोड़, कहां ले चला उड़ाकर।
रविकर बढ़ा विवाद, पंच की बजी रागिनी।
उल्लू जाये जीत. रहे रो हंस हंसिनी ।
दोहा
जहां न्याय मुंह देखकर, करें पंच सरपंच।
रहे वहां वीरानगी, होते रहें प्रपंच।।
जहां न्याय मुंह देखकर, करें पंच सरपंच।
रहे वहां वीरानगी, होते रहें प्रपंच।।
घर जल भोजन में करे, यदि प्रभु-भक्ति प्रवेश।
मन्दिर, चरणामृत बने, कटे भोग से क्लेश।
कटे भोग से क्लेश, कर्म कहलाये पूजा ।
यही भक्ति की शक्ति , गीत कीर्तन बन गूंजा।
अनुभव जब यह भक्ति, करे रविकर का अन्तर ।
वह मानव बन जाय, शान्ति-सुख छाये घर घर।
छोरे ताकें छोरियां, वक्त करे आगाह |
मर्यादा मत भूलना, रखती घडी निगाह |
मर्यादा मत भूलना, रखती घडी निगाह |
रखती घडी निगाह, नहीं कर कानाफूसी |
पति प्रेमी पितु-मातु, करा सकते जासूसी |
पति प्रेमी पितु-मातु, करा सकते जासूसी |
फिर महिला आयोग, सूत्र यह सकल बटोरे |
भिजवा देगी जेल, सुधर जा अरे छिछोरे ||
भिजवा देगी जेल, सुधर जा अरे छिछोरे ||
पूछें खड़े गृहस्थ जब, सन्यासी के हाल।
सन्यासी हँसकर कहे, मेरे राम कृपाल।
मेरे राम कृपाल, रखें अब चाहे जैसा।
रहता मैं खुशहाल, बोल बच्चा तू कैसा।
कहता दुखी गृहस्थ, कहूँ क्या उत्तर छूछे।
मेरी सिया दयालु, प्रश्न उनसे ही पूछें।
सन्यासी हँसकर कहे, मेरे राम कृपाल।
मेरे राम कृपाल, रखें अब चाहे जैसा।
रहता मैं खुशहाल, बोल बच्चा तू कैसा।
कहता दुखी गृहस्थ, कहूँ क्या उत्तर छूछे।
मेरी सिया दयालु, प्रश्न उनसे ही पूछें।
वाह सुन्दर ।
ReplyDelete