अधिक मिले पहले मिले, किस्मत वक्त नकार।
इसी लालसा से व्यथित, रविकर यह संसार।।
धर्म ग्रन्थ में जिन्दगी, कर लो मियां तलाश।
साधो मन की ग्रन्थियां, हो अन्यथा विनाश।।
चाहे जितना रंज हो, कसे तंज पर तंज।
किन्तु कभी मारे नहीं, अपनों को शतरंज।।
अनुभव का अनुमान से, हरदम तिगुना तेज।
फल बिखरे अनुमान का, अनुभव रखे सहेज।।
अपने मुंह मिट्ठू बनें, किन्तु चूकता ढीठ।
नहीं ठोक पाया कभी, रविकर अपनी पीठ।।
इसी लालसा से व्यथित, रविकर यह संसार।।
धर्म ग्रन्थ में जिन्दगी, कर लो मियां तलाश।
साधो मन की ग्रन्थियां, हो अन्यथा विनाश।।
चाहे जितना रंज हो, कसे तंज पर तंज।
किन्तु कभी मारे नहीं, अपनों को शतरंज।।
अनुभव का अनुमान से, हरदम तिगुना तेज।
फल बिखरे अनुमान का, अनुभव रखे सहेज।।
अपने मुंह मिट्ठू बनें, किन्तु चूकता ढीठ।
नहीं ठोक पाया कभी, रविकर अपनी पीठ।।
बहुत सुन्दर दोहे ।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-10-2016) के चर्चा मंच "मातृ-शक्ति की छाँव" (चर्चा अंक-2490) पर भी होगी!
ReplyDeleteशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'