(1)
भूसा पर क्यूँ लीपता, पता नहीं हे नाथ।
पिता मुलायम हाथ से, आज खुजाता माथ।
आज खुजाता माथ, चला जाता है बेटा।
सत्ता का संघर्ष, वंश सम्पूर्ण लपेटा।
बड़ा हुआ यह नाट्य, सूत्रधारी अब रूसा।
दर्शक बनते पात्र, सुलगता गोबर भूसा।।
(2)
चरवाहों के स्वांग से, चढ़ा साधु को रोष।
मूसल पैदा होयगा, किया साधु उद्घोष।
किया साधु उद्घोष, समय पर उपजा मूसल।
उपजा पूत कमाल, हुई फिर मारक हलचल।
मारकाट मच जाय, वंश मिट जाये रविकर।
चारा बिना प्रदेश, मरुस्थल करते चर चर।।
क्या बात है ।
ReplyDeleteमारकाट मच जाय, वंश मिट जाये रविकर।
ReplyDeleteचारा बिना प्रदेश, मरुस्थल करते चर चर।।
...बहुत खूब!