गुलामी गैर करवाता बजा तू हुक्म आका का।
पराजय दूसरे दें दोष थोड़ा सा लड़ाका का।
सदा दुख दर्द दूजे दें तुम्हारा भाग्य तुम जानो ।
पतन हो किन्तु यदि रविकर स्वयं का दोष तो मानो।।
दवा लाने दवाखाने पिता हर पाख जाते हैं।
हुई गठिया गयी बिटिया बड़ी तकलीफ पाते हैं ।
बढ़े पीड़ा कदम भारू मगर फिर भी उठाते हैं।
उधर बेटे लिए डॉगी सुबह वाकिंग कराते हैं।।
डरपोक होना सर्प का कल्याणकारी है सदा।
आलस्य भारी सिंह का टाले मनुज की आपदा।
पंडित नहीं जो एक मत, फतवे नहीं जारी हुए।
कारण यही महफूज है संसार रविकर सर्वदा।।
प्रात: निकलती जिन्दगी पैसा कमाने के लिए।
पर शांति खोजे शाम को आराम पाने के लिए।।
बस कर्म करते जाइये पूजा यही भगवान की।
कुछ दान करने के लिए खाने खिलाने के लिए।।
विधाता छंद
(1)
सियासत खेल करती है सिया वनवास जाती है।
परीक्षा नारि ही देती पुरुष को शर्म आती है।
अगर है सुपनखा कोई उसे नकटा बना देते।
सिया एवं सती को फिर सियासत में फँसा देते।।
(2)
जला के वे दिया अपना बुझाते तीलियाँ झट से।
निकलता काम ज्यों ही वे मिटा देते पटक फट से।
यही दस्तूर दुनिया का सितम करता रहा रविकर।
बुझाकर प्यास कुल्हड़ को गये वे फेंक कर पथ पर।।
(३)
किसी का स्वास्थ्य गिर जाये, दुबारा पुष्ट हो काया।
कभी दौलत गुमे रविकर, मिले फिर से महामाया।
भुला जाये अगर विद्या, दुबारा सीख सकते हो
मगर जब वक्त खोया तो, कहाँ फिर वक्त वह आया।।
वाह बहुत ही शानदार छंद.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
Atyant sundar. Vishmayakul.
ReplyDeleteलाजवाब....
ReplyDeleteवाह!!!
क्या बात...क्या बात...
बहुत सुंदर छंद, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग