13 August, 2017

सम्पत्ति सत्ता संग तो सम्मान भी रहता डरा-

खरगोश सी आती हमेशा दौड़कर बीमारियाँ ।
कछुवा सरिस जाती मगर तन तोड़कर बीमारियाँ।
कछुवा सरिस पैसा सदा रविकर इधर आता रहा।
खरगोश सा लेकिन हमेशा दौड़कर जाता रहा।।

त्यागी-विरागी का जहाँ सम्मान था आदर भरा।
था सेठ की सम्पत्ति से असहाय को भी आसरा।
सत्ता रही हितकर करों में किन्तु तीनों साथ अब
सम्पत्ति सत्ता संग तो सम्मान भी रहता डरा।।

मत अश्रु रोको तुम कभी जब याद तड़पाने लगे।
रोको हितैषी को अगर वो रूठकर जाने लगे।
रविकर उड़ाना मत हँसी मजबूर की कमजोर की
रोको हँसी मुस्कान वह , यदि चोट पहुँचाने लगे।।

मदर सा पाठ लाइफ का पढ़ाता है सिखाता है।
खुदा का नेक बन्दा बन खुशी के गीत गाता है।
रहे वह शान्ति से मिलजुल, करे ईमान की बातें
मगर फिर कौन हूरों का, उसे सपना दिखाता है।।

मुसीबत की करो पूजा, सिखाकर पाठ जायेगी।
करो मत फिक्र कल की तुम, हँसी रविकर उड़ायेगी।
यहाँ तो मौत आने तक मजे से हंस गाता है ।
वहीं वह मोर नाचा तो, मगर आँसू बहाता है।।

नख दंत वाले सींग वाले पालतू से दस कदम।
पशु जंगली घातक अगर दो सौ कदम तब दूर हम।
पशु किन्तु मतवाला अगर तो दृष्टि से ओझल रहूँ ।
मद का नशा पद का नशा मदिरा नशा से कौन कम।।

मुझे मदिरा चढ़े जब भी मुझे मालूम पड़ जाता।
मुहल्ला जान जाता है, जमाने को मजा आता।
तुझे मद का नशा भारी नहीं क्यों जान पाते तू
पता सबको लगा लेकिन नहीं तू क्यों पता पाता।।

अजी क्या वक्त था पहले, घड़ी तो एक थी लेकिन।
सभी के पास टाइम था, गुजरते थे खुशी से दिन।।
सभी के पास मोबाइल, घड़ी भी हाथ में सबके।
गुजरता किन्तु यह जीवन, सभी का आज टाइम बिन।।

भगवान के आकार पर वह शिष्य करता प्रश्न जब।
आकाश में उस यान को दिखला रहे आचार्य तब।
नजदीक ज्यों ज्यों आ रहा आकार बढ़ता यान का।
त्यों त्यों बढ़े ब्रह्मांड सा आकार-अणु भगवान का।।

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