पिलाकर दूध झट शिशु को, फटाफट हो गई रेडी।
उठाई पर्स मोबाइल घड़ी चाभी चतुर लेडी।
इधर ताके उधर ताके नहीं जब ध्यान कुछ आया।
लगा आवाज आया को, वही फिर प्रश्न दुहराया।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया।
हाय री ममता मुई मया।।
बिदा बिटिया हुई जैसे, हुई बारात भी ओझल।
अटैची बैग लेकर के हुए तैयार सब दल बल।
अतिथिशाला करें खाली पिता माता बहन भाई।
सभी वापस चले घर को, बुआ जी प्रश्न दुहराई।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया।
घोंसला खाली उड़ी बया।।
बसा परदेश में बेटा, वहीं पैदा हुई पोती।
मिला वीजा गया बाबा, बढ़ी फिर आँख की ज्योती।
खुशी के दिन उड़े झटपट, विदाई की घड़ी आई |।
चले सामान जब लेकर करे सुत प्रश्न दुखदाई। कहीं कुछ रह तो नहीं गया। पुत्र को आई नहीं दया।। पड़े बीमार जब बाबू, कृषक बेटा करे सेवा। मगर भगवान की मर्जी, हुई माँ शीघ्र ही बेवा। चिता उनकी जला करके, हितैषी लौट कर आये। लगा जब लौटने बेटा, पड़ोसी प्रश्न दुहराये। छोड़कर लज्जा शर्म हया। कहीं कुछ रह तो नही गया ।।
चले सामान जब लेकर करे सुत प्रश्न दुखदाई। कहीं कुछ रह तो नहीं गया। पुत्र को आई नहीं दया।। पड़े बीमार जब बाबू, कृषक बेटा करे सेवा। मगर भगवान की मर्जी, हुई माँ शीघ्र ही बेवा। चिता उनकी जला करके, हितैषी लौट कर आये। लगा जब लौटने बेटा, पड़ोसी प्रश्न दुहराये। छोड़कर लज्जा शर्म हया। कहीं कुछ रह तो नही गया ।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-09-2017) को
ReplyDelete"कहीं कुछ रह तो नहीं गया" (चर्चा अंक 2726)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteकमाल की प्रस्तुति......
लाजवाब...