विधाता छंद
निमंत्रण बिन गई मैके, करें मां बाप अन्देखी।
गई जब यज्ञशाला में, बघारे तब बहन शेखी।
कहीं भी भाग शिव का जब नहीं देखी उमा जाकर।
किया तब दक्ष पुत्री ने कठिन निर्णय कुपित होकर।
स्वयं समिधा सती बनती, हुआ विध्वंस तब रविकर।
उठाकर फिर सती काया, वहां ताँडव करें शंकर।।
प्रलय संभावना दीखे, उमा-तन से शिवा सनके।
सुदर्शन चक्र से टुकड़े करें तब विष्णु उस तन के।।
हरिगीतिका छंद
पायल मुकुट एड़ी कलाई हार सिर ठोढ़ी गिरे।
घुटना पहुँचियाँ यौनि चूड़ामणि नयन जोड़ी गिरे।
धड़ पैर मस्तक पीठ कंधा वक्ष एड़ी नासिका।
जिभ्या गला दो हाथ दस उंगली गिरे मणिकर्णिका।
दिल दाढ़ गिरती अस्थियाँ दो होंठ आमाशय सहित।
भ्रूमध्य जंघा कर्ण में हैं शक्ति इक्यावान निहित।
नेपाल लंका पाक बांग्लादेश तिब्बत में वहां।
बंगाल राजस्थान उत्तर और दक्षिण में यहां।
No comments:
Post a Comment