हक छोड़ते श्रीराम तो, शुभ ग्रन्थ रामायण रचा।
इतिहास उन्नति का समाहित विश्व में मानव बचा।
लेकिन बिना हक जब हड़पता सम्पदा बरबंड तब
इतिहास अवनति का रचा रविकर महाभारत मचा।।
कामार्थ का बैताल जब शैतान ने रविकर गढ़ा।
तो कर्म के कंधे झुका, वो धर्म के सिर पर चढ़ा।
मुल्ला पुजारी पादरी परियोजना लाकर कई
पूजाघरों से विश्व को वे पाठ फिर देते पढा।
जब धाक, धाकड़-आदमी छल से जमाना सीख ले ।
सारा जमाना नाम, धन-दौलत कमाना सीख ले |
ईमान रिश्ते दीनता तब बेंच खाना सीख तू
फिर कर बहाना बैठकर आंसू बहाना सीख ले
सडे़ दोनों गले दोनों, गले मिलना नहीं भाया।
सलामी के लिए दिल को नहीं रविकर मना पाया।
वही खाकी वही खादी सभी के आचरण गंदे
चरण कुछ साफ़ देखे तो, उन्हें गणतंत्र छू आया।
शैतानियाँ शिशु कर रहा, मैया डराती ही रही।
बाबा पकड़ ले जायगा, हर बात पर मैया कही।
खाया पिया सोया डरा, पर आज खुश है शिशु बड़ा
पकड़े गये बाबा कई, तो जिद करे शिशु फिर अड़ा।।
किसी की राय से राही पकड़ ले पथ सही रविकर।
मगर मंज़िल नही मिलती, बिना मेहनत किए डटकर।
तुम्हें पहचानते बेशक प्रशंसक, तो बहुत सारे
मगर शुभचिंतकों की खुद, करो पहचान तुम प्यारे।।
बहस माता-पिता गुरु से, नहीं करता कभी रविकर ।
अवज्ञा भी नहीं करता, सुने फटकार भी हँसकर।
कभी भी मूर्ख पागल से नहीं तकरार करता पर-
सुनो हक छीनने वालों, करे संघर्ष बढ़-चढ़ कर।।
पतन होता रहा प्रतिपल, मगर दौलत कमाता वो ।
करे नित धर्म की निन्दा, खजाना लूट लाता वो।
सहे अपमान धन खातिर, बना गद्दार भी लेकिन
पसारे हाथ आया था, पसारे हाथ जाता वो।।
जब मूढ़ अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बना तो जग हँसा।
जब ठोक पाया खुद नहीं वह पीठ अपनी, तो फँसा।
रविकर कभी तुम पीठ अपनी मत दिखाना यूँ कहीं
शाबासियाँ मिलती यहीं, मिलता यहीं खंजर धँसा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-09-2017) को
ReplyDeleteनिमंत्रण बिन गई मैके, करें मां बाप अन्देखी-; चर्चामंच 2740
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुन्दर।
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