30 October, 2017

उसको फिर भी दूँ दुआ, फूले-फले अघाय

प्रश्न कभी गुत्थी कभी, कभी जिन्दगी ख्वाब।
सुलझा के साकार कर, रविकर खोज जवाब।।

फूले-फूले वे फिरें, खुद में रहे भुलाय |
उसको फिर भी दूँ दुआ, फूले-फले अघाय ||

दीदा पर परदा पड़ा, बहू न आये बाज।
परदा फटते फट गया, परदादी नाराज।।

दो मन का तन तनतना, लगा जमाने धाक।
उड़ा जमाने ने दिया, बचा न एक छटाक।

रोज़ खरीदे नोट से, रविकर मोटा माल।
लेकिन आँके भाग्य को, सिक्का एक उछाल।।

मनुज गहे रविकर अगर, सुसंस्कार सुविचार।
कंठी माला की कभी, पड़े नहीं दरकार।

समय शब्द तो शून्य सम, लो दाँये बैठाय।
गये अगर ये दो निकल, विकल हृदय झुँझलाय।।

गलाकाट प्रतियोगिता, सह समझौतावाद।
मार मनुजता को सकें, बना सकें जल्लाद।।

मोह-लालसा लाल सा, सिर पर लिया चढ़ाय।
किन्तु जलधि में भार से, नित डूबे उतराय।।

पहेलियाँ
कागज में लिपटा बदन, एक सिरे पर आग।
दूजे पर मुँह मूढ़ का, प्राणान्तक अनुराग।1।

बेचलर डिग्री मर्द की, कर दी गयी निरस्त।
मास्टर्स औरत को मिली, अब्दुल्ला मदमस्त।2।

द्वार-द्वार मँडरा रहा, सिर गिन गिन के गिद्ध।
पाँच साल गायब रहा, हुआ स्वार्थ ज्यों सिद्ध। ।।

लगे नहाने व्यक्ति वह, ज्यों जल में गिर जाय।
अगर गिरह कट जाय तो, दानी बड़ा कहाय।।

जीवन जिये गरीब सा, पैसा रहा बचाय।
ताकि धनी बनकर मरे, रविकर नित गम खाय।।

किया सैकड़ों गलतियाँ, फिर पाया ईनाम।
इक सुंदर सा नाम दे, लगा बिताने शाम।।

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