बच्चों को नहला धुला, करता हूँ तैयार।
फिर भी नहला पर रही, बीबी दहला मार।।
रहे पड़ोसी तभी कुँवारा।
पति पहली तारीख पर, पाता छप्पन-भोग।
भोग रहा फिर माह भर, कर कर गृह उद्योग।।
हाय हाय रे पति बेचारा।
दही जमाना छोड़ के, रही जमाती धाक।
रहा जमाना देखता, रविकर की औकात।।
दैव दैव आलसी पुकारा।
गलती पर गलती करे, करे बहाना नित्य।
नही दाल गलती अगर, अश्रु बहाना कृत्य।।
दिखला देती दिन में तारा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-02-2018) को दही जमाना छोड़ के, रही जमाती धाक; चर्चामंच 2877 पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
महाशिवरात्रि की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर
ReplyDelete