19 February, 2018

पर उसूल पर जब चले, चुभते शूल अनेक

रविकर संस्कारी बड़ा, किन्तु न माने लोग।
सोलहवें संस्कार का, देखें अपितु सुयोग।।

जीवन-फल हैं शक्ति धन, मूल मित्र परिवार।
हो सकते फल बिन मगर, मूल जीवनाधार।।

कहो न उसको मूर्ख तुम, करो न उसपर क्रोध।
आप भला तो जग भला, रविकर सोच अबोध।।

भूतल में जलयान के, बढ़े छिद्र आकार।
छिद्रान्वेषण कर रहे, छत पर खड़े सवार।।

बोलो खुल के बोल लो, नहीं रहो चुप आज।
अगर जरूरी मौन से, रविकर के अल्फ़ाज़।।

घूम घूम कर बेचता, ग्वाला दूध उधार।
ढूंढ ढूंढ मदिरा नगद, किनता किन्तु बिहार।।
किनता=खरीदना
अमृत पीकर के अमर, रविकर हुए अनेक।
विष पीने वाला मगर, अमरनाथ तो एक।।

कौन जन्म पद जाति को, रविकर सका नकार।
किन्तु बड़प्पन का रहा, संस्कार आधार।।

अच्छी बातें कह चुका, जग तो लाखों बार।
किन्तु करेगा कब अमल, कब होगा उद्धार।।

कान लगाकर सुन रहा, जब सारा संसार।
रविकर सुनता दिल लगा, हर खामोश पुकार।।

चले शूल पर तो चुभा, जूते में बस एक।
पर उसूल पर जब चले, चुभते शूल अनेक।।

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