किसी की माँ पहाड़ों से हुकूमत विश्व पर करती।
बुलावा भेज पुत्रों के सिरों पर हाथ है धरती।
किसी की मातु मथुरा में भजन कर भीख पर जीवित
नहीं सुत को बुला पाती, अकेली आह भर मरती ।।
कभी पूरी कहाँ होती जरूरत, जिंदगी तेरी।
हुई कब नींद भी पूरी, तुझे प्रत्येक दिन घेरी।
करे जद्दोजहद रविकर, हुई कल खत्म मजबूरी।
अधूरी नींद भी पूरी, जरूरत भी हुई पूरी।
अच्छे विचारों से हमेशा मन बने देवस्थली।
शुभ आचरण यदि हैं हमारे, तन बने देवस्थली।
व्यवहार यदि अच्छा रहे तो धन बने देवस्थली।
तीनो मिलें तो शर्तिया, जीवन बने देवस्थली।।
किसी का दिल दुखाकर के तुम्हें यदि चैन आता है।
किसी को चोट पहुँचाना, तुम्हे यदि खूब भाता है।
मिलेगा शर्तिया धोखा, सुनो चेतावनी देता-
दुखेगा दिल तुम्हारा भी, तुम्हे रविकर बताता है।।
हवा को शुद्ध करके तरु-मनुज फल-फूल देते जब।
प्रदूषण-मुक्त परिसर कर क्षरण लू रोक लेते तब।
लड़े तूफान से भरदम, कहीं यदि गिर गये तो भी
करें कल्याण दुनिया का, कहाते देहदानी अब।।
हुआ यूँ शान्तिमय जीवन, तड़प मिट सी गई तन की।
सहन ताने करे नियमित, व्यथा कैसे कहे मन की।
सवेरे काम पर जाता, अँधेरे लौटकर आता-
मशीनी आदमी रविकर, मगर दुनिया कहे सनकी।।
खुशी तो हड़बड़ी में थी, घरी भर भी नहीं ठहरी।
मगर गम को गजब फुरसत, करे वो मित्रता गहरी।।
उदासी बन गयी दासी दबाये पैर मुँह बाये
सितारे रात भर गिनता, कटे काटे न दोपहरी।।
सूर्य की किरणें प्रखर जग-जिन्दगी जग-मग करें।
चंद्र किरणें भी सदा श्रृंगार कर रौनक भरें।
अन्यथा अवसाद आये, और हम यूँ ही मरें।।
अगरचे दूर मंजिल तो, जरूरी पैर में दमखम।
चलेगा देर तक कैसे, इरादों में अगर बेदम।
मगर असहाय रविकर को, भरोसा ईष्ट-मित्रों पर
उठाने हेतु कंधो पर, रहें तैयार जो हरदम।।
हस्त बिन हस्ती दिखा जाते कई।
पद बिना भी दौड़कर दुनिया गई।
अस्तित्व यदि अपनी नजर में है सुनो-
पद सिफारिश बिन मिले मंजिल नई।।
शिव की जटा ने तीव्र-धारा खूब धारा।
उद्दंड पुरखों को भगीरथ-कर्म तारा।
बेहद सफाई से करे सत्ता सफाई-
खरदूषणों ने पर, दुशासन संग मारा।।
गिद्ध की ख्वाहिस यही, हों हरतरफ लाशें पड़ी।
उल्लुओं को तो हमेशा, रोशनी से चिढ़ बड़ी।
भुखमरी बेरोजगारी जातिगत संघर्ष की
याचना करती सियासत, आँख कुर्सी पर गड़ी।।
फूलता फलता सफलता के शिखर पर चढ़ रहा।
योग्यता श्रम से सुनहरा कल स्वयं से गढ़ रहा।
माँ-पिता भाई-बहन से भेंट करना भूलता-
मुस्कुराना भूलता तो दोष उनपर मढ़ रहा।।
खटकता है अगर कोई, उसे चुपचाप छोड़ो तुम।
करे खटपट अगर तब भी, उसे धोकर निचोड़ो तुम।
मगर नाराज यदि अपने, रहो नित खटखटाते दिल-
कभी कोशिश नहीं छोड़ो, पुनः सम्बन्ध जोड़ो तुम।।
मगर से बैर है रविकर, मगर यह झील मज़बूरी |
जरुरी सावधानी है, बनाकर वह रखे दूरी |
मगर उस मत्स्य-कन्या ने, बनाया मित्र बगुले को-
उड़ाकर ले गया बगुला, बिताई शाम अंगूरी ||
अभिजात अंग्रेजी बके, हिंदी हमारी शान है |
सौ फीसदी अंग्रेजियत में किन्तु हिन्दुस्तान है |
(2)
हाथी हिरण वनराज गैंडे आज संरक्षित सभी।
कुछ अन्य अभयारण्य की, लेकिन जरूरत है अभी।
इनके लिए होगी सुरक्षित क्या जगह कोई कभी।
(3)
हड्डियाँ तक गल गयीं, जाता नहीं खुद को छुआ।
क्यों कहूँ कैसे कहूँ, इंसान #खस्ताहाल है-
हे प्रभो कर दो दया, हे मित्रगण दे दो दुआ।।
1)
निष्प्राण-मानव से कभी तुम प्रश्न तो पूछो सही।
है कौन सी पीड़ा असह्य, जो अब उसे तड़पा रही।
अफसोस कर वह अश्रु पीकर तो बकेगा शर्तिया-
बेकार जीवन कर दिया, है मुझे पीड़ा यही।।
(☺☺बेकार जीवन कर दिया क्यों, क्यों नहीं दारू पिया)
(2)
अखरती जिंदगी फिर भी, सदा वह मौत से डरता।
मगर जो मोक्ष चाहे वो, भला उच्छ्वास कब भरता।
अनिश्चित जिंदगी पर क्यों मचाता हाय-तौबा तू।
सुनिश्चित मौत की रविकर, मगर तैयारियाँ करता।।
घड़ी उपहास करती है, समय का हरसमय रविकर।
बड़ी सी बात करती है, सभी के साथ वह अक्सर।
समय बदलाव का धन है नहीं झुठला सके कोई-
करो इसकी सुरक्षा तो, बनेगी जिन्दगी बेह्तर।।।
काफी दिनों के बाद पूछी, आप कैसे हो कहो।
दिल में जलन, हैं लाल आँखे, सास क्यों उखड़ी अहो।
क्या प्यार में हो आज तक , अब भी मुझे भूले नहीं
दिल्ली शहर से आ रहा, औकात में तुम तो रहो।।
दाल रोटी नौकरी परिवार की चिंता करूँ।
#आफलाइन जब तलक घर-बार की चिंता करूँ।
फिर सियासत धर्म की संसार की चिंता करूँ।।
प्राय: परायों से पराजय, पीर पाकर हम पड़े।
परतंत्र भी करते पराये, युद्ध भी यद्यपि लड़े।
लेकिन पतन होता सदा, रविकर स्वयं के दोष से ।
अति-व्यस्त हो या मूर्ख हो या हो अहंकारी बड़ा।
मत मित्रता इनसे करो, लो फैसला इनपर कड़ा।
फुरसत कहाँ है व्यस्त को, तो हर घमण्डी मतलबी-
विद्वान दुश्मन मूर्ख दोस्तो पर सदा भारी पड़ा।।
मातु लक्ष्मी को नमन, रविकर सफल जीवन करें।
स्वास्थ्य-उत्तम बुद्धि-निर्मल ज्ञान-अनुपम नित भरें।
रिद्धि सुख समृद्धि दे, दे सिद्धि शुभ दीपावली।
विघ्न-बाधा व्याधियाँ विघ्नेश धनवन्तरि हरें।
😂
बेटी के' हाथों में रहे, माँ-बाप की इज्जत सदा।
चाहे सँभाले या उछाले, राम जाने क्या बदा।
नालायकों के हाथ में, परिवार की कुल सम्पदा।
चाहे बढ़ायें या उड़ायें, फर्ज रविकर कर अदा।।
तज़रबा नाम शाला का, लिया कल दाखिला बाबू
चुकाता फीस साँसो से, शुरू है सिलसिला बाबू।।
पढ़ाई कर रहा नियमित, नकल-कल का भरोसा क्या-
मगर था प्रश्न बाहर का, नहीं उत्तर मिला बाबू।
अदभुद
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